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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Tuesday 26 January 2016

बैकवाटर का मज़ा पॉन्डिचेरी के पैराडाइज़ बीच पर

बैकवाटर का मज़ा पॉन्डिचेरी के पैराडाइज़ बीच पर

Paradise Beach
कौन कहता है कि बैक वॉटर का मज़ा केवल केरल में ही लिया जा सकता है। आपको यह अनुभव पॉन्डिचेरी में भी मिल सकता है।इसके लिए आपको नज़दीक ही पैराडाइज़ बीच पर जाना होगा। बंगाल की खाड़ी से लगा  यह एक ऐसा बीच है जोकि समुद्र के अंदर है। आपको यहां तक पहुँचने के लिए फेरी से जाना पड़ेगा। 
Boat Stand @ Paradise Beach
 ऐसा बहुत कम लोग जानते होंगे कि इस बीच का नाम 'चुनामबर बीच' है लेकिन यहां की ख़ूबसूरती को देख कर इसका नाम पैराडाइज़ बीच पड़ा। जितना शांत यह बीच है उतनी ही सुन्दर इस तक पहुंचने की यात्रा है।

Back water@ Paradise Beach

छोटी बड़ी बोट सैलानियों को स्टैण्ड से बिठाती हैं और बीच तक छोड़ती हैं  में यही  बोट्स वापस भी लाती हैं। स्टैण्ड से बीच तक का रास्ता बहुत सुन्दर है। नीला आसमान और साफ स्वच्छ पानी आपका मन मोह लेंगे। बैक वॉटर के दोनों और नारियल के झाड़ आपका स्वागत करेंगे।  कहते हैं पॉन्डिचेरी आकर अगर 
पैराडाइज़ बीच नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा। 
blissful-and-serene-paradise-beach-pondicherry
 फेरी से लगभग 15 मिनट में आप पैराडाइज़ बीच तक पहुंच जाते हैं। फेरी स्टैण्ड के पास  रेस्टॉरेंट भी हैं आप यहां ठहर कर गर्मागरम कॉफी का मज़ा ले सकते हैं। 
Paradise-beach-Pondicherry

शहर से 8 किलोमीटर दूर  पैराडाइज़ बीच  जमीन की  एक सूखी पट्टी है जिसके चारों ओर पानी है। साफ सुन्दर बीच अपने में समेटे हुए है कई सारी खूबियां, जैसे यहां रेस्टॉरेंट में आप सी फ़ूड का मज़ा ले सकते हैं। 

Back waters @ Paradise Beach

अगर आप समुद्र की लहरों में अटखेलियां करना चाहें तो उसका भी इंतिज़ाम है। लेकिन एक जोड़ी एक्स्ट्रा कपड़े लेजाना न भूलें। यहां चेंजिंग रूम की भी व्यवस्था है। यहां की रेत सुनहरी और पानी नीला है। 

Sun & Sand @ Paradise Beach 

Place to rest @ Paradise Beach 


Paradise Beach 


यहां पानी का बहाव थोड़ा  शांत है इसलिए बच्चों के खेलने के लिए यह एक उत्तम बीच है। 

Paradise Beach 

यहां क़तार में बिछी सफ़ेद रंग की बेंचें आपके रिलेक्स होने के लिए ही रखी गई हैं। इस बीच तक पहुंचने के लिए फेरी सर्विस है जोकि सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक रहती है। पर ध्यान रहे कि यह सर्विस मानसून के महीनों में बंद कर दी जाती है। 

KK @ Paradise Beach 
फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत दर्शन में किसी नए शहर की यात्रा पर,तब तक खुश रहिये,और घूमते रहिये,एक शेर मेरे जैसे घुमक्कड़ों को समर्पित "सैर कर दुनियाँ की ग़ाफ़िल ज़िन्दिगानी फिर कहाँ, 
ज़िन्दिगानी  गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ "

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त डा० कायनात क़ाज़ी 

Wednesday 20 January 2016

मिनी दार्जिलिंग: मिरिक

मिनी दार्जिलिंग: मिरिक





Mirik town from Hill top

 मिरिक पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग ज़िले में स्थित एक मनोरम हिल स्टेशन है। हिमालय की वादियों में बसा छोटा सा पहाड़ी क़स्बा मिरिक पिछले कुछ वर्षों में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। इसके पीछे कई कारण हैं। एक तो यह कि पश्चिम बंगाल में यह सबसे ज़्यादा आसानी से पहुंचने वाला स्थान है, दूसरा यहां रूटीन हिल स्टेशन जैसी भीड़ भाड़ नहीं है। इस जगह के बारे में अभी बहुत लोग नहीं जानते हैं इसलिए भी यहां की प्राकृतिक सुंदरता बरक़रार है।

Tea gardens on the way to Mirik


 इस जगह को आकर्षक बनाने में इसकी भौगोलिक स्थिति का बड़ा हाथ है। मिरिक समुद्र तल से 4905 फुट की ऊंचाई पर स्थित है, और चाय के ढालदार पहाड़ियों से घिरा हुआ है। मिरिक के जंगली फूल, सुंदर झीलें और क्रिप्‍टोमेरिया जापानिका के पेड़ मिरिक को एक उष्‍ण कटिबंधी स्‍वर्ग बनाते हैं। छोटा सा मिरिक अपने में समेटे है, बोकर गोम्पा, सुमेंदू लेक, सिंघा देवी मंदिर, हनुमान, शिव और माता काली मंदिर।

 यह जगह जितनी खूबसूरत है उससे भी ज़्यादा खूबसूरत है यहां तक पहुंचने का रास्ता। चाय के बागानों से होता हुआ नदियों झरनों को लांघता हुआ, और झुक आए बादलों को चूमता हुआ। दिल को अंदर तक तर कर देने वाली ख़ुशी जैसा।

A waterfall on the way to Mirik

यहां का बेहद शांत माहौल लोगों को सुकून देता है। मिरिक शहर के बीचों बीच एक मानव निर्मित झील है, जिसे सुमेंदू लेक कहते हैं। जिसके बीचों बीच एक फ्लोटिंग फाउंटेन है। यह झील लगभग डेढ़ किलोमीटर लम्बी है। जिसके किनारे किनारे देवदार के ऊंचे वृक्ष लगे हुए हैं। ऐसा लगता है मानो ऊँचे ऊँचे यह देवदार वृक्ष इस झील की सुरक्षा के लिए खड़े हैं. कोहरे के दुशाले में लिपटी यह झील कुछ पल वहीँ ठहरजाने को मजबूर कर देती है।  यहां बोटिंग भी की जा सकती है। झील के आसपास कई छोटे छोटे रस्टॉरेंट हैं जहां बैठ कर गर्म गर्म चाय और नेपाली खाने का आनंद लिया जा सकता है। इन रेस्टॉरेंट से सटी  हुई भूटिया लोगों की दुकाने हैं जहां गर्म हाथ से बुने ऊनी वस्त्र जैसे मोज़े, दस्ताने रंग बिरंगे मफ़लर आदि मिलते है.

Sumendu Lake

Local people love to feed Fishes in the lake




इस झील में फिशिंग भी की जाती है। लोग यहां मछलियों को खाना खिलाते हैं। मिरिक बाजार से थोड़ा दूर ऊंचाई पर एक मोनेस्ट्री है। यह बहुत ही सुन्दर मॉनेस्ट्री है। पहाड़ी के शिखर पर बनी यह मॉनेस्ट्री बहुत खूबसूरत है। इसका नाम-बोकर नागदोन चोखोर लिंग मोनेस्ट्री है.


Bokar Ngedon Chokhor Ling Monastery

Small Lamas are running towards Monastery 
इस मोनेस्ट्री की स्थापना बौद्ध धर्मगुरु क्याब्जे बोकर रिम्पोचे ने 1984 में की थी। आज यहाँ लगभग 500 छात्र बौद्ध धर्म की विधिवत शिक्षा ग्रहण करते हैं। 



 यहां से हिमालय पर्वत शृंखला में कंचनजंगा के अद्भुत दृश्‍य भी दिखाई देते हैं। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त बहुत सुंदर नजारा देखने को मिलता हैं। यहां पर मिलने वाले प्राकृतिक नज़ारे बहुत हद तक दार्जिलिंग से मिलते जुलते हैंशायद इसी लिए लोग इसे मिनी दार्जिलिंग भी कहते हैं।





मिरिक में फलों के बागान भी हैं। पश्चिम बंगाल में संतरा सबसे ज़्यादा यहीं पैदा होता है। मिरिक में ठहरने के लिए कई होटल हैं।

कब जाएं:-

बरसात के मौसम को छोड़ कर वर्ष में कभी भी जाया जा सकता है। लेकिन यही वह समय है जब मिरिक बेहद खूबसूरत और हरा भरा नज़र आता है। अगर आप एडवेंचर के शौक़ीन हैं तो एक बार मिरिक बरसात में ज़रूर जाएं। प्रकृति के बेहद हसीं करिश्मे देखने को मिलेंगे। कभी बादल इतने निचे आजाएगा कि आप उसके बीच से होकर गुज़र जाएँगे। रास्तों में जगह जगह बरसाती झरने आपका स्वागत करेंगे। लेकिन कंचनजंघा का नज़ारा गर्मियों में ज़्यादा अच्छा दीखता है। ऊंचाई पर होने के कारण यहां सर्दियों में अधिक ठण्ड पड़ती है। 

कैसे जाएं:-

वायु मार्ग- मिरिक से बगडोगरा का एयरपोर्ट सबसे नजदीक है. यहां से इसकी दूरी 55 किलोमीटर है

रेलमार्ग- मिरिक से सबसे नजदीक न्यू जलपाईगुड़ी का स्टेशन पड़ता है
सड़क मार्ग- सिलीगुड़ी से दो घंटे में मिरिक पहुंच सकते हैं




फिर मिलेंगे दोस्तों हिमालय के किसी और छुपे हुए नगीने को देखने 

तब तक खुश रहिये और घूमते रहिये। 



आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त 



डा ० कायनात क़ाज़ी 

KK on the way to Mirik

Thursday 7 January 2016

सुहाना सफर:दार्जिलिंग हिमालयी रेल

सुहाना सफर:दार्जिलिंग हिमालयी रेल

Steam engine@Darjeeling Himalayan Railway


हमारे देश का गौरव माना जाने वाला हिमालय भारत के मानचित्र पर उत्तर से लेकर उत्तर पूर्व तक के अपने विशाल फैलाव में इतना कुछ समेटे हुए है कि जिसे गहराई से जानने और समझने के लिए शायद एक जन्म भी कम पड़ेगा। हिमालय से मेरा लगाव बार-बार मुझे अपनी ओर खींचता है। फिर वो शिवालिक हो, धौलाधार हो, या फिर पीरपंजाल सब को फलांगती मैं हिमालय की विविधता में और गहरे उतरती जाती हूं। इस बार दोस्तों हम उत्तर पूर्व में फैले हिमालय के कुछ बेहतरीन नज़रों से रूबरू होंगे। तो फिर चलें पूरब में बसे हिमालय का गेट कहे जाने वाले शहर न्यू जलपाईगुड़ी यहीं से हमारे सफर की शुरुवात होगी। हम यहीं से अतीत की यादों को ताज़ा करेंगे और लेंगे मज़ा दार्जिलिंग हिमालयी रेल यात्रा का।

Steam Engine ready to take the tourist for Joy ride 


 दार्जिलिंग हिमालयी रेल जिसे लोग "टॉय ट्रेन" के नाम से ज़्यादा पहचानते है, भारत के राज्य पश्चिम बंगाल में न्यू जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग के बीच चलने वाली एक छोटी लाइन की रेलवे प्रणाली है। इसका निर्माण 1879 और 1881 के बीच किया गया था और इसकी कुल लंबाई 78 किलोमीटर है। इसकी ऊंचाई स्तर न्यू जलपाईगुड़ी में लगभग 328 फीट से लेकर दार्जिलिंग में 7,218 फुट तक है। और आपको जानकर हैरानी होगी कि इसका निर्माण अंग्रेज़ों ने सन् 1882 में ईस्ट इंडिया कंपनी के मज़दूरों को पहाड़ों तक पहुंचाने के लिए किया था। तब का दार्जिलिंग शहर आज के दार्जिलिंग से बिलकुल जुदा था तब वहां सिर्फ 1 मोनेस्ट्री, ओब्ज़र्वेटरी हिल, 20 झोंपड़ियां और लगभग 100 लोगों की आबादी थी। पर आज यह नज़ारा बिलकुल बदल चुका है। आज दार्जिलिंग हिमालयी रेल को यूनेस्को द्वारा नीलगिरि पर्वतीय रेल और कालका शिमला रेलवे के साथ भारत की पर्वतीय रेल के रूप में विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

Darjeeling Himalayan Railway station


 यह एक अनोखा अनुभव है जिसको देखने प्रतिवर्ष लाखों लोग आते हैं। सन् 2011 में तिनधरिया और पगलाझोरा में भारी भूस्खलन के कारण डीएचआर ने टॉयट्रेन सेवा को निलंबित कर दिया था। पहाड़ों में हुए उस भूस्खलन के कारण दार्जिलिंग हिमालयी रेल की सेवा न्यू जलपाईगुड़ी से पिछले चार वर्षों से बाधित थी लेकिन इसी वर्ष दिसंबर में इसका संचालन दुबारा शुरू कर दिया गया है। न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग तक की सेवा आधुनिक डीजल इंजनों द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है। जबकि पुराने ब्रिटिश निर्मित बी श्रेणी के भाप इंजन, डीएचआर 778 का संचालन  दैनिक पर्यटन गाड़ियों के लिए दैनिक कुर्सियांग-दार्जिलिंग वापसी सेवा और दार्जिलिंग से घूम (भारत का सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन) के लिए किया जाता है। इस जॉय राइड का अनुभव लेने के लिए आपको अपनी जेब थोड़ी ढ़ीली करनी होगी।

Tindharya railway station


सिलीगुड़ी को दार्जिलिंग की पहाड़ियों से जोड़ने वाली टॉयट्रेन सेवा पर्यटकों के बीच मनोरम दृश्यों को लेकर काफी लोकप्रिय है इसलिए टिकट पहले से ही बुक ज़रूर करवा लें।
दार्जिलिंग हिमालयी रेल की लम्बाई सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग के बीच 78 किमी (48 मील) की है। जिसमें 13 स्टेशन न्यू जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी टाउन, सिलीगुड़ी जंक्शन, सुकना, रंगटंग, तिनधरिया, गयाबाड़ी, महानदी, कुर्सियांग, टुंग, सोनादा, घुम और दार्जिलिंग पड़ते हैं। न्यू जलपाईगुड़ी के समतल रेलवे स्टेशन से शुरू हुई यह यात्रा हर मोड़ पर कुछ अनोखा लिए हुए बैठी है। शहर के बीचों बीच से गुज़रती दो डिब्बों की यह रेल गाड़ी लहराती हुई चाय बागानों के बीच से होकर महानंदा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के भीतर जंगलों में प्रवेश करती है। इसकी रफ़्तार अधिकतम 20 किमी प्रति घंटा है, लेकिन आप चाहें तो दौड़ कर पकड़ सकते हैं। हरयाली से भरे जंगलों को पार करती हुई यह पहाड़ों में बसे छोटे छोटे गांवों से होती हुई आगे बढ़ती है। रास्ते में कई जगह रिवर्स लाइन भी पड़ती हैं। जहां रेलवे का एक कर्मचारी घने जंगल में मुस्तैदी से ट्रेन के लिए लाइन बदलता है और एक बार फिर यह सुहाना सफर शुरू हो जाता है। इन हसीन वादियों में देखने के लिए बहुत कुछ है, जैसे पहाड़ी झरने, वनस्पति, सुन्दर सजीले पक्षी और मुस्कुराते पहाड़ी लोग।
यहां के लोग प्रकृति के साथ जीने की कला जानते हैं। इनके घर छोटे मगर सुन्दर होते हैं। आसपास इतनी हरयाली और पेड़ पौधों के बावजूद इनके घर के आसपास कितने ही सुन्दर फूलदार पौधे लगे होते हैं।

Toy Train entering in the Mahananda Wildlife Sanctuary


In the middle of the jungle


कितने ही लूप और ट्रैक बदलती हुई यह ट्रेन पहाड़ी गांव और क़स्बों से मिलती मिलाती किसी पहाड़ी बुज़ुर्ग की तरह 6-7 घंटों में धीरे-धीरे सुस्ताती हुई दार्जिलिंग पहुंचती है। इस रास्ते पर पड़ने वाले स्टेशन भी अंग्रेज़ों के ज़माने की याद ताज़ा करवाते हैं। इस ट्रेक पर पड़ने वाला कुर्सियांग एक बड़ा शहर है, यहीं दार्जिलिंग से कुछ पहले घूम स्टेशन पड़ता है. भारत में सबसे ऊंचाई लगभग 7407 फीट पर स्थित माना जाने वाला रेलवे स्टेशन- घूम यहीं स्थित है। इसे सबसे ऊंचाई पर स्थित होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ से आगे चलकर बतासिया लूप पड़ता है। यहां एक शहीद स्मारक है,यहां से पूरा दार्जिलिंग नज़र आता है। शाम होते होते यह टॉय ट्रेन आपको दार्जिलिंग पहुंचा देती है। यह यात्रा दार्जिलिंग में समाप्त हो जाती है।

Some useful information

 टॉय ट्रेन की इस अविस्मरणीय यात्रा करते हुए आप किसी और दौर में ही पहुंच जाते हैं। जहां आजकल की ज़िन्दगी जैसी आपाधापी नहीं है। एक लय है हर चीज़ में, प्रकृति के साथ तारतम्य बिठाती हुई ज़िन्दगी है,जो इन पहाड़ी गांवों में बसती है, और फूलों-सी खिलती है।

Darjeeling Himalayan Railway logo



फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत दर्शन में किसी नए शहर की यात्रा पर, तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

KK@ Darjeeling Himalayan Railway 

एक शेर मेरे जैसे घुमक्कड़ों को समर्पित
"सैर कर दुनियां की ग़ाफ़िल ज़िन्दगानी फिर कहां,
 ज़िन्दगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहां "
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी