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कुछ पंक्तियां इस ब्लॉग के बारे में :

प्रिय पाठक,
हिन्दी के प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग पर आपका स्वागत है.….
ऐसा नहीं है कि हिन्दी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिन्दी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग्स लिख रहे हैं। पर एक चीज़ की कमी अक्सर खलती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कन्टेन्ट है वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती और जिन ब्लॉग्स पर अच्छी तस्वीरें होती हैं वहां कन्टेन्ट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर हूँ। मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिये इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिन्दी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहाँ आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं, अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी कुछ बेहतरीन तस्वीरें।
उम्मीद है, आप को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
आपके कमेन्ट मुझे इस ब्लॉग को और बेहतर बनाने की प्रेरणा देंगे।

मंगल मृदुल कामनाओं सहित
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

Thursday 12 November 2015

चश्मे, चिनार, गार्डेन्स और डल लेक आठ घंटों मे...

Kashmir day-2 

इस श्रंखला की पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें : कश्मीर पहला दिन 

कश्मीर दूसरा दिन


Route Map-Places near Dal Lake


चश्मे, चिनार, गार्डेन्स और डल लेक आठ घंटों मे...

कश्मीर मे मेरा आज यह दूसरा दिन है। हमने फैसला किया कि आज श्रीनगर घूमा जाए। सुबह से लेकर शाम तक के आठ घंटों मे आधा श्रीनगर देखना है। श्रीनगर को हम दो हिस्सों मे बांट कर देख सकते हैं। एक हिस्सा जो डल लेक के आस पास बना हुआ है। जिसमे मुगलों के बनवाए हुए गार्डेन्स शामिल हैं और दूसरा हिस्सा डाउन टाउन श्रीनगर जिसे ओल्ड श्रीनगर भी कहते हैं। एक दिन मे पूरा श्रीनगर नही देखा जा सकता है। इसलिए पहले हम डल लेक के आस पास बने मुगल गार्डेन्स देखेंगे।


Chashme Shahi


श्रीनगर मशहूर है यहां पर बने गार्डेन्स के लिए। यह गार्डेन्स मुगल बादशाहों ने बनवाए थे। मुगलों को कश्मीर से बहुत लगाव था। मुग़लों ने कश्मीर पर लगभग 167 वर्षों तक राज किया। जिसकी छाप यहां पर खूब दिखाई देती है। मुगल मूल रूप से मध्य एशिया मे स्थित समरक़ंद और फ़र्गाना से आए थे। और जिस रेशम मार्ग से वे भारत मे दाखिल हुए थे वहीं नज़दीक ही कश्मीर वैली भी पड़ती थी। यह जगह मुगलों को खूब भा गई। क्योकि जिस जगह से व आए थे वहां की जलवायु से कश्मीर का मौसम मिलता जुलता था। मुगलों ने दिल्ली को अपनी सल्तनत तो बनाया पर कश्मीर से लगाव को दिल से ना निकाल पाए। दिल्ली मे रहते हुए उन्हें कश्मीर की वादियों का हुस्न अपनी ओर खींचता, और फिर दिल्ली की गर्मी भी मुगल बादशाहों से बर्दाश्त ना होती। इसलिए मुगलों ने कश्मीर को अपनी गर्मियों की आरामगाह के रूप मे विकसित किया। 


Chashm-e-Shahi


यहां मुगलों ने पर्शियन आर्किटेक्चर के हिसाब से टेरेस गार्डेन्स बनवाए। जिनमे मशहूर मुगल गार्डेन्स हैं; चश्मे शाही, निशात बाग, शालीमार बाग और परी महल। इन सभी गार्डेन्स की ख़ासियत है इन मे प्रयोग हुए प्राकृतिक जल स्त्रोत। ज़बरवान पहाड़ों के आंचल मे बने यह टेरेस गार्डेन्स सजाए गए हैं इनके बीच बहने वाली नहरों से। यह पानी के सोते अविरल बहते हुए इन बागों को सुंदरता प्रदान करते हैं और आगे जाकर डल झील मे मिल जाते हैं। यह पहाड़ी सोते जहां एक ओर इन बागों की सुदरता को गति प्रदान कर सजीव बनाते हैं वहीं डल झील मे मिलकर झील के पानी को निरंतर फ्रेश पानी पहुंचाते हैं। डल झील से होता हुआ यह पानी आगे जाकर झेलम नदी मे पहुंचता है। मुगलों द्वारा प्राकृतिक जल संसाधनों का इतना परभावी उपयोग सराहनीय है। यह अपने आप मे एक ईको सिस्टम है, जिससे ना जाने कितने अनगिनत जीव जन्तु, पशु पक्षी लाभान्वित हो रहे हैं। पर्शियन आर्किटेक्चर पर स्लामिक आर्किटेक्चर का प्रभाव  प्रमुखता से देखने को मिलता है।


Royal Spring


इस्लामिक आर्किटेक्चर क़ुरान मे वर्णित जन्नत के स्वरूप से बहुत परभावित है। क़ुरान मे जन्नत मे बने ऐसे बागों का ज़िक्र है जिनके बीच से नहरें बह रही होंगी। मुग़ल बादशाह धरती पर ऐसे ही स्वर्ग की रचना करना चाहते थे। इसीलिए मुग़ल वास्तुकारों ने भी ऐसे ही बागों की रचना करने की कोशिश की है। मुग़ल गार्डेन्स की वास्तुकला के यह नमूने कश्मीर के अलावा कई अन्य स्थानों मे भी पाए जाते हैं। आगरा के ताज महल मे बने बाग भी ऐसी ही वास्तुकला पर आधारित हैं। हम आज इन आठ घंटों मे इन्ही सारे स्मारकों को देखेंगे। हम सबसे पहले चश्मे शाही देखने गए। चश्मे शाही का अर्थ होता है -“शाही झरना चश्मे शाही मुग़ल गार्डन्स में सबसे पहले बना था। कहते हैं इस गार्डन को मुग़ल मलिका नूर जहां के भाई आसिफ ख़ान ने बनाया था। इसे रॉयल स्प्रिंग भी कहा जाता है। ज़बरवान पर्वत श्रंखला के दामन में तीन टेरेस में बना यह स्मारक बुलवर्ड रोड से चार किलोमीटर दूर स्थित है। यहां के स्थानीय लोग मानते हैं कि इस झरने में प्राकृतिक स्वास्थवर्धक तत्व मिले हुए हैं। यह एक खूबसूरत बाग है जिसके बीच मे से झरना बह रहा है। 


Pari Mahal




Pari Mahal




यहां पर लोग कश्मीरी ड्रेस मे फोटो खिंचवा रहे थे। चश्मे शाही के गेट से ही दाईं ओर से परी महल को रास्ता जाता है। चश्मे शाही से लगभग 3 किलोमीटर दूर पहाड़ की चड़ाई पार करने के बाद परी महल बना हुआ है। इसका निर्माण मुग़ल शहज़ादे दारा शिकोह ने करवाया था। और यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि मुग़ल शहज़ादे दाराशिकोह को सितारों और ग्रहों में बहुत दिलचस्पी थी। और यह स्मारक ज्योतिष और खगोल विज्ञान के स्कूल के लिए बनाया गया था। ऊंचाई पर बने होने के कारण इसका प्रयोग पूरे श्रीनगर पर नज़र रखने के लिए भी किया जाता था। यह दुर्ग 12 टेरेस मे बना हुआ ही। यहां से पूरी डल लेक दिखाई देती है।


Panoramic View of Dal Lake from Pari Mahal


परी महल से वापसी मे हम ने बटॅनिकल गार्डेन देखा। इस गार्डेन को हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट ने बनवाया है। यहां पर आप बोटिंग भी कर सकते हैं। बच्चों के खेलने के लिए यहां झूले भी बनवाए गए हैं।
अभी दोपहर का समय हुआ है, चश्मे शाही, परी महल और बटॅनिकल गार्डेन एक दिशा मे ही पड़ते हैं और एक दूसरे से बहुत नज़दीक हैं। हम वापस डल झील पर आ गए हैं। यहां पर वॉटर स्पोर्ट्स की भी व्यवस्था है। आप डल झील मे वॉटर स्कूटर भी चला सकते हैं। यह राइड घाट से लेकर डल झील के बीच मे बने चार चिनार टापू तक की होती है। जिसके लिए हमने 600 रुपय अदा किए। हमारा अगला पड़ाव है निशात गार्डेन जिसे निशात बाग भी कहते हैं।


Nishat Bagh


 निशात बाग़ फ़ारसी का शब्द है जिसका अर्थ होता है, एक ऐसा बाग़ जहां जाकर ख़ुशी मिले, और वास्तविकता में भी वहां जाकर हमें ख़ुशी का अनुभव हुआ भी। इस बाग़ को मुग़ल मलिका नूर जहां के बड़े भाई अब्दुल हसन आसिफ खान ने सन् 1634 में मुग़ल बादशाह जहांगीर के काल में बनवाया था। निशात बाग़ देखने के लिए आपको टिकट लेना होगा। यहां पर स्थानीए लोगो की बहुत भीड़ है। कश्मीरी लोग गर्मियों के 6 महीनों को बहुत एंजाय करते हैं। सभी पिकनिक के मूड मे नज़र आते हैं। कश्मीरी लोग निशात गार्डेन मे बने बड़े-बड़े बग़ीचों मे पूरे परिवार के साथ पिकनिक माना रहे थे। कश्मीरी महिलाऐं अपने घरों से ही खाने पका कर लाई थीं और साथ ही स्टोव भी लाई थीं। जिन पर खाना गर्म करके खिलाया जा रहा था। 


Kashmiri girl@Nishat Bagh


बच्चे निशात बाग़ मे बनी नहरों मे पानी से खेल रहे थे। पानी के इन छोटे बड़े होज़ मे बच्चों को पानी से अटखेलियां करता देख कर मुझे अहसास हुआ कि यह तो उस ज़माने के वॉटर पार्क रहे होंगे। जिनको मुगलों ने अपने सैर सपाटे के लिए बनवाया होगा।
निशात बाग के नज़दीक ही एक शॉपिंग एरिया है जहां पर कश्मीरी हैंडीक्राफ्ट और खाने पीने की बहुत-सी दुकाने हैं।
अगर आप डल लेक मे सनसेट की तस्वीर लेना चाहते हैं तो निशात बाग़ के सामने बने घाट से शाम के वक़्त शिकारा राइड लें। यहां से सनसेट का नज़ारा बहुत खूबसूरत आता है।

इस वक़्त शाम होने को है और हमें अभी शालीमार गार्डेन भी देखना है। निशात गार्डेन से लगभग 4 किमी की दूरी पर शालीमार गार्डेन है। इस गार्डेन को मुग़ल बादशाह जहांगीर ने अपनी बेगम नूरजहां को खुश करने के लिए सन् 1619 में बनवाया था। यह भी एक टेरेस गार्डेन है जोकि पार्शियन वास्तुकला के हिसाब से बना हुआ है लेकिन इस गार्डन में सिर्फ तीन टेरेस हैं। शालीमार बाग़ को मुग़ल वास्तुकला का बेहतरीन नमूना कह सकते हैं। पहला गार्डन आम लोगों के लिए बनाया गया था। वहां पर एक संगेमरमर की ईमारत भी है जिसे दीवाने आम कहते हैं। इस गार्डन में भी बीच से नहर बह रही है। इसके ऊपर वाले टेरेस पर दीवाने खास है कहा जाता है की यहां तक सिर्फ ख़ास लोग ही जाया करते थे। तीसरे टेरेस के साथ ही जनानखाना लगा हुआ है। शाहजहां ने यहां एक काले मार्बल की बारादरी भी बनवाई थी। मैं जब बारादरी में पहुंची तो कहीं से बड़ी ही मीठी बांसुरी की आवाज़ आ रही थी। थोड़ा तलाशने पर पाया कि बारादरी के एक कोने में दो कश्मीरी युवक अपनी धुन में खोए बांसुरी के सुर छेड़ रहे हैं। यहां चारों तरफ चिनार के ऊंचे ऊंचे पेड़ हैं। 


Spring@Nishat Bagh



Shalimar Garden


कोई कोई पेड़ तो 400 साल पुराना है। इस बाग़ की ख़ूबसूरती शब्दों में ब्यान नहीं की जा सकती है। इस जगह की खूबसूरती को कैमरे में क़ैद करने के बाद भी मेरा मन कर रहा था कि काश के मैं इसका एक छोटा-सा टुकड़ा अपने साथ ले जा सकती। मैंने ज़मीं पर पड़े ज़र्द चिनार के पत्ते को उठा कर अपनी किताब में रख लिया और सोचा कि अपने साथ यहां की कुछ यादें तो मैं लेजा ही सकती हूं। शालीमार गार्डन के बाहर भी काफी सारी दुकानें हैं जहां से आप सोविनियर खरीद सकते हैं। मैंने भी पश्मीना की शॉल खरीदी जिस पर चिनार की पत्तियां बनी हुई थीं। 


Chinar leafs


आज का दिन मुग़लों वाले कश्मीर को देखने में कब गुज़र गया पता ही नहीं चला। पर यह तो कश्मीर का सिर्फ एक रंग है। अभी बहुत कुछ बाक़ी है। कल हम जाएंगे डाउन टाउन कश्मीर। हमारे देश में आए सूफ़ीज़्म की जड़ें तलाशने।

तब तक के लिए खुश रहिये, घूमते रहिये।

और ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ.

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त


डा० कायनात क़ाज़ी   

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